भजन - कीर्तन और प्रार्थना क्यों की जाती हैं  ?

नमस्कार मित्रों , 

मैं आचार्य सतीश थपलियाल एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ,भजन - कीर्तन और प्रार्थना क्यों की जाती है ?

  आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विष काय में कुछ जानकरी लेकर,आपने ईश्वर की प्राप्ति हेतु, ईश्वर की कृपा प्राप्ति हेतु,ईश्वर अनुकंपा के लिए या अन्य अपने स्वार्थ के लिए लोगों को पूजा पाठ,भजन,कीर्तन,प्रार्थना आदी को करते हुये तो अवश्य ही देखा होगा, परन्तु क्या आपने कभी सोचा है की पूजा पाठ भजन कीर्तन आदी करने का क्या लाभ है ?

हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि :

  1. भजनस्य लक्षणं रसनम् अर्थात् अंतरात्मा का रस जिसमें उभरे, उसका नाम है - भजन । हृदय में जो आनंद वस्तु , व्यक्ति या भोज - सामग्री के बिना भी आता है . वही भजन का रस है ।


  2. रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने कहा है कि जो साधक भगवान् का विश्वास पाने के लिए भजन करता है , प्रभु अपनी अहैतुकी कृपा से उसे अपना विश्वास प्रदान करके उसके जीवन को सफल कर देते हैं । 

पद्मपुराण के उत्तरखंड में कहा गया है :

नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च । मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद । (  पद्मपुराण / उत्तराखंड 14/23 )

अर्थात् हे नारद ! मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूं और न योगियों के हृदय में ही रहता हूं । मैं तो वहीं रहता हूं , जहां प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं ।
मैं सदैव लोगों के अंत : करण में रहता हूं । शास्त्रकारों ने कहा है - मुक्तिः ददाति कश्चित् न भक्तियोगम् अर्थात् स्वयं भगवान भी भजन करने वालों को मुक्ति सुलभ कर देते हैं , पर भक्ति सबको नहीं देते । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है :

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक । साधुरेव स मन्तव्य सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥ ( श्रीमद्भगवद् गीता 9/30 )

अर्थात् यदि कोई दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है , तो वह साधु ही मानने योग्य है । क्योंकि उसने भली भांति निश्चित कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है । ऐसा व्यक्ति थोड़े ही दिनों में धर्मात्मा होकर सुख - शांति पाता है । आगे भी वे कहते है !

अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ।( श्रीमद्भगवद् गीता 9/33 ) 

अर्थात् हे अर्जुन ! तू इस नाशवान दुखमय और क्षणभंगुर मनुष्य शरीर को प्राप्त हुआ है । इसलिए निरंतर मेरा ही भजन कर , ताकि इससे बाहर निकल सके । इस प्रकार नित्य प्रार्थना का बड़ा महत्त्व है । मनुष्य ही नहीं देवता भी एक - दूसरे और ईश्वर की प्रार्थना करते हैं । प्रत्येक मानव के हृदय की प्रार्थना है !

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।(बृहदारण्यक उपषिद्  1/3/27 )

अर्थात् मुझे असत् से सत् की ओर ले चलो , अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो ।
इसके द्वारा हम ईश्वर से अपना संबंध जोड़कर महान् विभूतियों के स्वामी बन सकते हैं और समस्त आधि - व्याधि , कष्ट , कठिनाइयों एवं रोग - शोकों से मुक्ति पा सकते हैं । ऋग्वेद में परमात्मा से प्रार्थना की गई है
  !

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥ ( ऋग्वेद 5/82/5 )

अर्थात् हे संसार रचयिता ईश्वर ! तू हम सबके पापों को दूर कर और जो कल्याणकारी विचार हैं , उन्हें हमें प्रदान कर । हे कृपासागर! हमारे अंत : करणों को पवित्र कर शुद्ध , बुद्ध और पवित्र बना । रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कहा है :-

मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन । ( उत्तरकांड 122 ख )जो चेतन कहं जड़ करई जड़हि करइ चैतन्य । ( उत्तरकांड 119 ख )तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई । ( लंकाकांड 34/8 )

अर्थात् ईश्वर असंभव को संभव और संभव को असंभव बनाने में सर्वथा समर्थ हैं, वह सब तरह से पूर्ण हैं । उनमें किंचित्मात्र भी कमी नहीं है । जब हमारा संबंध उनसे प्रार्थना के माध्यम से जुड़ जाएगा, तो उनकी सारी शक्ति हमारे में आ जाएगी । प्रार्थना से कष्ट, दुख, संताप, पश्चात्ताप, शारीरिक बीमारियां, चित्त के विकार, मन के पाप दूर हो जाते हैं । आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं , दैवी शक्तियां ईश्वर के प्रति विश्वास बढ़ता है, आत्मबल, आत्म - विश्वास व आत्मज्ञान होती है ।

आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती जय मां जगदी ज्योतिष केंद्र कि ओर से मैं आचार्य सतीश थपलियाल आपसे क्षमा याचना करता हूं देवी देवताओं को पूजा पाठ में नारियल क्यों चढ़ाया जाता है नमस्कार मित्रों , मैं आचार्य सतीश थपलियाल एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर !

मित्रों यदि आप कभी कंही किसी भी हिन्दू मंदिर में दर्शन करने गए होंगे तो आपने एक चीज पर जरूर गौर किया होगा की वंहा उस मंदिर में प्रसाद के तौर पर चढाने के लिए नारियल अवश्य ही मिला होगा ! पर क्या हिन्दू मंदिर में उस नारियल चढाने की परम्परा को देख कर आपके मन में भी कभी यह ख्याल आया है की आखिर मंदिरों में देवी देवताओं को पूजा पाठ में नारियल क्यों चढ़ाया जाता है ?

अगर आपके मन में भी आया है यह सवाल तो जवाब लेकर मैं उपस्थित हूँ आइये जानते हैं 

  • प्रायः सभी देवी - देवताओं को नारियल चढ़ाने की परम्परा है । कलश पूजन में नारियल पर रोली की छींटे देकर कलश मुख पर रखा जाता है । इसे मंगलसूचक , समृद्धिदायी व सम्मान सूचक माना गया है । नारियल भगवान शिव का परमप्रिय फल माना जाता है । इसमें बनी तीन आंखों की आकृति को त्रिनेत्र का प्रतीक माना जाता है ।
  • तन्त्र शास्त्र के अनुसार नारियल की भेंट को मानव बलि के समान ही माना जाता है । वास्तव में इसे मानव के सिर का पर्याय कहा गया है । इसलिए तंत्र में भी नारियल का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है ।
  • पौराणिक कथाओं में नारियल को कल्पतरु कहा गया है । और ऐसी मान्यता है की नारियल चढाने के बाद और कुछ चढ़ाना अनिवार्य नहीं रह जाता है , यही नहीं नारियल में ब्रह्मा ,विष्णु और महेश का वास भी माना जाता है इसलिए तीनो देवताओं का स्वरुप मान कर भी नारियल को देवी देवताओं को अर्पित किया जाता है।
  • शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को भी नारियल की ही भांति ऊपर से कठोर व भीतर से नरम होना चाहिए इसी धारणा के अनुसार भी लोग भगवान को नारियल अर्पित करते हैं की है प्रभु बाहर से नारियल के समान कठोर हमारे घमंड को आपके श्री चरणों में समर्पित करते हैं इसलिए पुजारी जी द्वारा नारियल को भगवान के चरणों में तोड़ दिया जाता है और मनुष्य का घमंड टूटने पर जिस प्रकार उस का वह कोमल भाव भगवान के आगे निखर कर आता है उसी प्रकार नारीयल का भी वह कोमल भाग भगवान को अर्पित हो जाता है ।
  • लोगों की ऐसी मान्यता है कि नारियल वृक्ष के पूजन के बाद जो भी कामना की जाती है , वह अवश्य ही पूर्ण होती है । कुछ ऐसे भी प्रदेश हैं जहां पूर्णिमा के दिन वरुणदेव का पूजन नारियल समर्पण करके किया जाता है ।
  • तो यह थे देवी देवताओं को पूजा पाठ में नारियल चाढाए जाने के पीछे के कुछ शास्त्र सम्मत प्रमाण ।आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो मै जय मां जगदी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं आचार्य सतीश थपलियाल आपसे क्षमा याचना करता हूं |

ज्योतिषाचार्य सतीश थपलियाल 


मैं आचार्य सतीश थपलियाल एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ,भजन - कीर्तन और प्रार्थना क्यों की जाती है ?
पता:जय माँ जगदी ज्योतिष केंद्र,निकट नंदी बैल रतूड़ी भवन नरेंद्र नगर,टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
मोबाइल: +91 8126417597, +91 9719340428
ईमेल: astrosatish10@gmail.com

परामर्श के तरीके :-

ईमेल के माध्यम से: 7 कार्य दिवसों के भीतर !
फोन परामर्श: नियुक्ति के अनुसार 24 घंटे के भीतर !
फेस टू फेस परामर्श: नियुक्ति के अनुसार 24 घंटे के भीतर !

I BUILT MY SITE FOR FREE USING