आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विष काय में कुछ जानकरी लेकर,आपने ईश्वर की प्राप्ति हेतु, ईश्वर की कृपा प्राप्ति हेतु,ईश्वर अनुकंपा के लिए या अन्य अपने स्वार्थ के लिए लोगों को पूजा पाठ,भजन,कीर्तन,प्रार्थना आदी को करते हुये तो अवश्य ही देखा होगा, परन्तु क्या आपने कभी सोचा है की पूजा पाठ भजन कीर्तन आदी करने का क्या लाभ है ?
नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च । मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद । ( पद्मपुराण / उत्तराखंड 14/23 )
अर्थात् हे नारद ! मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूं और न योगियों के हृदय में ही रहता हूं । मैं तो वहीं रहता हूं , जहां प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं ।
मैं सदैव लोगों के अंत : करण में रहता हूं । शास्त्रकारों ने कहा है - मुक्तिः ददाति कश्चित् न भक्तियोगम् अर्थात् स्वयं भगवान भी भजन करने वालों को मुक्ति सुलभ कर देते हैं , पर भक्ति सबको नहीं देते । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है :
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक । साधुरेव स मन्तव्य सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥ ( श्रीमद्भगवद् गीता 9/30 )
अर्थात् यदि कोई दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है , तो वह साधु ही मानने योग्य है । क्योंकि उसने भली भांति निश्चित कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है । ऐसा व्यक्ति थोड़े ही दिनों में धर्मात्मा होकर सुख - शांति पाता है । आगे भी वे कहते है !
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ।( श्रीमद्भगवद् गीता 9/33 )
अर्थात् हे अर्जुन ! तू इस नाशवान दुखमय और क्षणभंगुर मनुष्य शरीर को प्राप्त हुआ है । इसलिए निरंतर मेरा ही भजन कर , ताकि इससे बाहर निकल सके । इस प्रकार नित्य प्रार्थना का बड़ा महत्त्व है । मनुष्य ही नहीं देवता भी एक - दूसरे और ईश्वर की प्रार्थना करते हैं । प्रत्येक मानव के हृदय की प्रार्थना है !
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।(बृहदारण्यक उपषिद् 1/3/27 )
अर्थात् मुझे असत् से सत् की ओर ले चलो , अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो ।
इसके द्वारा हम ईश्वर से अपना संबंध जोड़कर महान् विभूतियों के स्वामी बन सकते हैं और समस्त आधि - व्याधि , कष्ट , कठिनाइयों एवं रोग - शोकों से मुक्ति पा सकते हैं । ऋग्वेद में परमात्मा से प्रार्थना की गई है !
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥ ( ऋग्वेद 5/82/5 )
अर्थात् हे संसार रचयिता ईश्वर ! तू हम सबके पापों को दूर कर और जो कल्याणकारी विचार हैं , उन्हें हमें प्रदान कर । हे कृपासागर! हमारे अंत : करणों को पवित्र कर शुद्ध , बुद्ध और पवित्र बना । रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कहा है :-
मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन । ( उत्तरकांड 122 ख )जो चेतन कहं जड़ करई जड़हि करइ चैतन्य । ( उत्तरकांड 119 ख )तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई । ( लंकाकांड 34/8 )
अर्थात् ईश्वर असंभव को संभव और संभव को असंभव बनाने में सर्वथा समर्थ हैं, वह सब तरह से पूर्ण हैं । उनमें किंचित्मात्र भी कमी नहीं है । जब हमारा संबंध उनसे प्रार्थना के माध्यम से जुड़ जाएगा, तो उनकी सारी शक्ति हमारे में आ जाएगी । प्रार्थना से कष्ट, दुख, संताप, पश्चात्ताप, शारीरिक बीमारियां, चित्त के विकार, मन के पाप दूर हो जाते हैं । आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं , दैवी शक्तियां ईश्वर के प्रति विश्वास बढ़ता है, आत्मबल, आत्म - विश्वास व आत्मज्ञान होती है ।
आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती जय मां जगदी ज्योतिष केंद्र कि ओर से मैं आचार्य सतीश थपलियाल आपसे क्षमा याचना करता हूं देवी देवताओं को पूजा पाठ में नारियल क्यों चढ़ाया जाता है नमस्कार मित्रों , मैं आचार्य सतीश थपलियाल एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर !
मित्रों यदि आप कभी कंही किसी भी हिन्दू मंदिर में दर्शन करने गए होंगे तो आपने एक चीज पर जरूर गौर किया होगा की वंहा उस मंदिर में प्रसाद के तौर पर चढाने के लिए नारियल अवश्य ही मिला होगा ! पर क्या हिन्दू मंदिर में उस नारियल चढाने की परम्परा को देख कर आपके मन में भी कभी यह ख्याल आया है की आखिर मंदिरों में देवी देवताओं को पूजा पाठ में नारियल क्यों चढ़ाया जाता है ?
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